उस पार मैंने देखा यूँही,
भोर वहाँ भी हुई,
सूरज उस पार भी यूँ ही,
सूरज इस पार भी यूँ ही…
सब लाली उसकी एक समान,
किरणें भी एक सी हैं उसकी,
कुछ मुसकाए हैं देख उसे,
कुछ देख रहे हैं बस यूँ ही….
वो काम पर जाता अबोध बालक,
यहाँ माॅनिंग वाॅक जरुरी है,
भोर का आनन्द तो है इस पार,
वो बालक तो बस यूँही…
आँखें मलता जाता बालक,
स्फूर्ति नवल इस पार है,
जीवन आनन्दित है इस पार,
उस बालक का तो बस यूँ ही…
एक समान थीं जो अब तक,
वो किरणें भी अब बँट चुकी हैं,
प्रकाशित जीवन है इस पार,
उस बालक का तो बस यूँ ही…